आस्थाउत्तराखंड

गंगा सप्तमी के शुभ अवसर पर तीर्थ पुरोहित समाज हरिद्वार द्वारा धूमधाम से मनाया गया माॅ गंगा का जन्मोत्सव

कलयुग दर्शन (24×7)

दीपक झा (संवाददाता)

हरिद्वार। गंगा सप्तमी तिथि पर तीर्थ पुरोहित समाज द्वारा हर की पैड़ी हरिद्वार में मां गंगा का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। गंगा सप्तमी पर तीर्थ पुरोहित समाज हरिद्वार द्वारा मां गंगा की शोभा यात्रा का आयोजन भी किया जाता है। जो कुषा घाट हरिद्वार से चलकर हर की पैड़ी हरिद्वार पर समाप्त होती है।

शोभा यात्रा में तीर्थ पुरोहित समाज के पदाधिकारी, तीर्थ पुरोहित परिवार, क्षेत्रवासी, एवं श्रद्धालुजन बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्ग लोक से शिवशंकर की जटाओं में पहुंची थी।

इसलिए इस दिन को गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है। इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है।

गंगा सप्तमी के पर्व पर मां गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैसे तो गंगा स्नान का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन इस दिन स्नान करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्ति पा जाता है। इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कहा जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से दस पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है।

इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। शास्त्रों में उल्लेख है कि जीवनदायिनी गंगा में स्नान, पुण्यसलिला नर्मदा के दर्शन और मोक्षदायिनी शिप्रा के स्मरण मात्र से मोक्ष मिल जाता है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा पूजन एवं स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है। सभी पापों का क्षय होता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन से मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है।

तीर्थ पुरोहितों के के द्वारा बताया गया कि गंगा सप्तमी एवं गंगा दशहरा के शुभ अवसर पर विधि-विधान से किया गया गंगा का पूजन अमोघ फल प्रदान करता है। पुराणों के अनुसार गंगा विष्णु के अंगूठे से निकली हैं, जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के प्रयास से कपिल मुनि के शाप द्वारा भस्मीकृत हुए राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों का उद्धार करने के लिए हुआ था, तब उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर माता गंगा को प्रसन्न किया और धरती पर लेकर आए।

आपको बताते चलें कि वैसे तो गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो गंगाजी के संपूर्ण अर्थ को परिभाषित करती है। गंगा नदी हिंदुओं की आस्था का केंद्र है और अनेक धर्मग्रंथों में गंगा महत्व का वर्णन देखने को मिलता है। एक अन्य पौराणिक एक कथा के अनुसार गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ। एक अन्य मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया।

एक अन्य कथा अनुसार जब भगवान शिव ने नारद मुनि, ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा, जिसे ब्रह्माजी ने उसे अपने कमंडल में भर लिया और इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ था। इस अवसर पर तीर्थ पुरोहित समाज के पदाधिकारी,सदस्य एवं क्षेत्रवासी मौजूद रहे।

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