उत्तराखंड

उत्तराखंड: भीषण गर्मी के चलते जल संकट का विकराल रूप, बिन जल क्या होगा शहरों एवं गांवों का?

कलयुग दर्शन (24×7)

सागर कुमार (सह संपादक)

देहरादून। पहाड़ों की गोद में बसा उत्तराखंड, जल संकट की आग में जल रहा है। अखबारों की सुर्खियां हर दिन एक नई कहानी बयां करती हैं कहीं पानी के लिए मारपीट, कहीं टैंकरों पर लूट, कहीं सूखे नलों की तस्वीरें। देहरादून जिले का ग्राम पुन्नीवाला भी इस संकट से अछूता नहीं है। जल जीवन मिशन के तहत हर घर नल, हर घर जल का सपना देख रहे उत्तराखंड के गांवों में आज जल संकट विकराल रूप ले चुका है। पिछले साल की गर्मी के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए इस साल पड़ी अत्यधिक गर्मी ने पानी की कमी को और भी गहरा कर दिया है। देहरादून जिले की ग्राम सभा कौडसी का वार्ड संख्या 5, ग्राम पुन्नीवाला इसका जीता-जागता उदाहरण है।

कभी आसपास के गांवों को पानी देने वाला यह गांव आज खुद प्यास से जूझ रहा है। नल तो हर घर में हैं, लेकिन नलों से पानी नहीं आता। ग्रामीणों का कहना है कि इस समस्या को लेकर कई बार जन प्रतिनिधियों से गुहार लगाई गई, लेकिन आज तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है। यह स्थिति केवल पुन्नीवाला तक ही सीमित नहीं है। उत्तराखंड के कई अन्य गांवों में भी ऐसी ही स्थिति है। जल संकट इतना गहरा हो चुका है कि लोगों को पीने के पानी के लिए किलोमीटरों दूर जाना पड़ रहा है। कई गांवों में पशुओं के लिए भी पानी की कमी हो रही है।

अगर यही हाल रहा, तो आने वाले समय में जलदान की जरूरत पड़ सकती है, जैसे रक्तदान आज किया जाता है। यह सोचना भी भयानक है कि पानी के लिए लोगों को एक दूसरे पर निर्भर रहना पड़ेगा। डोईवाला महाविद्यालय के पूर्व विश्वविद्यालय प्रतिनिधि, अधिवक्ता अंकित तिवारी ने कहा कि आने वाले समय में जलदान की आवश्यकता पड़ सकती है।उन्होंने कहा कि जल संकट की गंभीरता को देखते हुए, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आने वाले समय में हमें “जलदान” की भी आवश्यकता हो सकती है। जैसे आज हम रक्तदान करते हैं, वैसे ही हमें जरूरतमंदों को पानी भी दान करना पड़ सकता है। यह सोचने में भी डर लगता है, लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई है जिसका सामना हमें करना पड़ सकता है। हमें अभी से सचेत हो जाना चाहिए और जल संरक्षण के लिए मिलकर प्रयास करने चाहिए।

[metaslider id="7337"]


[banner id="7349"]

Related Articles

Back to top button