आस्थाउत्तराखंड

नवरात्रि: धर्मनगरी हरिद्वार में नील पर्वत पर स्थित मां चंडी देवी मंदिर में श्रद्धालु मां के दर्शन कर सौभाग्य आरोग्य का वरदान प्राप्त करते हैं

कलयुग दर्शन (24×7)

सागर कुमार (सह संपादक)

धर्मनगरी हरिद्वार में मां दुर्गा के सिद्धपीठ व शक्ति पीठ कहे जाने वाले मां दुर्गा के अनेक मंदिर हैं। इनमें से एक धर्मनगरी का प्रख्यात मां चंडी देवी का मंदिर है। देश में मौजूद 52 शक्ति पीठों में से एक नील पर्वत पर स्थित मां चंडी देवी मंदिर में मां खंभ के रूप में विराजमान है। गंगा से सटे नील पर्वत पर स्थित मां चंडी का मंदिर आदि काल से है।

जब शुंभ, निशुंभ और महिसासुर ने इस धरती पर प्रलय मचाया, तब देवताओं ने उनके संहार के लिए बहुत प्रयास किया, अनेकों प्रयत्न करने पर भी जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने भगवान शंकर के दरबार में जाकर दोनों के संहार के लिए भगवान शंकर से प्रार्थना की। तब भगवान शंकर व अन्य देवताओं के तेज से मां अवतरित हुई और उन्होंने चंडीरूप धारण कर उन दैत्यों शुभ निशुंभ महा पापी दैत्यौ एवं उनकी समस्त सेना का संघार किया। शुंभ, निशुंभ दैत्य नील पर्वत पर मां चंडी से बच कर छिपे हुए थे, तभी मां चंडी ने यहां खंभ रूप में प्रकट होकर दोनों का वध किया। शुंभ निशुंभ दैत्यौ के वध से खुश होकर सभी दैत्य ने मां चंडी देवी जय-जय कर की। इसके उपरांत माता ने प्रसन्न होकर देवताओं से वर मांगने को कहा।

स्वर्गलोक के सभी देवताओं ने मानव जाति के कल्याण के लिए मां चंडी से इसी स्थान पर विराजमान रहने का वर मांगा। तब से ही माता चंडी यहां पर विराजमान हो कर अपने भक्तों का कल्याण कर रही है। नवरात्रों में यहां देश के विभिन्न जगहों से श्रद्धालु श्रद्धाभाव के साथ पहुंचते हैं। बताया जाता है कि नवरात्रों में यहां देश के विभिन्न कोनों से श्रद्धालुजन मां चंडी के दर्शन कर मन का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मां चंडी अपने सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करती है। आठवीं शताब्दी में मां चंडी देवी का जीर्णोद्धार जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने विधिवत रूप से कराया था।

इसके बाद कश्मीर के राजा सुचेत सिंह ने 1872 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मां रुद्र चंडी एक खंभे के रूप में स्वयंभू अवतरित है। मां चंडी देवी मंदिर हरिद्वार के प्रमुख पांच तीर्थों में से एक तीर्थ है जिसको नीलपर्वत पीठ के नाम से भी जाना जाता है। अनादि काल से मां चंडी देवी मंदिर में आए भक्तों को अकाल मृत्यु, रोग नाश, शत्रु भय आदि कष्टों से मुक्ति प्रदान कर भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण कर अष्ट सिद्धि प्रदान करती है।

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