उत्तराखंड

रामनगर: जिम कॉर्बेट का 149वां जन्मदिन कॉर्बेट ग्राम विकास समिति ने धूम धाम से मनाया

कलयुग दर्शन (24×7)

सागर कुमार (सह संपादक)

रामनगर। शिकारी से पर्यावरण संरक्षणवादी बने जिम कॉर्बेट की 149वीं जयंती गुरुवार को जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में मनाई गई। कॉर्बेट ग्राम विकास सामिति के सचिव मोहन पांडे ने कहा, “जिम कॉर्बेट ने इस पार्क में बहुत बड़ा योगदान दिया है।

स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के साथ-साथ यह पार्क पर्यटन क्षेत्र में राजस्व उत्पन्न करने का भी काम करता है।” जिम कॉर्बेट ने 31 वर्ष की आयु में 19 आदमखोर बाघों और 14 आदमखोर तेंदुओं को मार गिराया था। उन्होंने बताया कि उन्होंने छह पुस्तकें भी लिखीं, जो बाद में बहुत लोकप्रिय हुईं।

25 जुलाई 1875 को नैनीताल में जन्मे वे एक प्रसिद्ध शिकारी के रूप में जाने जाते थे, लेकिन बाद में वे एक संरक्षणवादी बन गए और भारत में कई राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की स्थापना की। एडवर्ड जेम्स ‘जिम’ कॉर्बेट को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने आदमखोर बाघों को मारने के लिए बुलाया था। उस समय गढ़वाल और कुमाऊं में आदमखोर बाघों ने आतंक मचा रखा था।

1907 में चंपावत में एक आदमखोर बाघ ने 436 लोगों को मार डाला था। जिम कॉर्बेट ने ही लोगों को आदमखोर बाघों के आतंक से बचाया था। 1910 में मुक्तेश्वर में उन्होंने जो पहला तेंदुआ मारा था, उसने 400 लोगों को मार डाला था और 31 वर्ष की आयु तक उन्होंने 33 नरभक्षी बाघों और तेंदुओं को मार डाला था।

जिम कॉर्बेट ने साल 1915 में स्थानीय व्यक्ति से कालाढूंगी क्षेत्र के छोटी हल्द्वानी में जमीन खरीदी। सर्दियों में यहां रहने के लिए जिम कॉर्बेट ने एक घर बना लिया और 1922 में यहां रहना शुरू कर दिया। गर्मियों में वो नैनीताल में गर्मी हाउस में रहने के लिए चले जाया करते थे।

उन्होंने अपने सहयोगियों के लिए अपनी 221 एकड़ जमीन को खेती और रहने के लिए दे दिया। जिसे आज कॉर्बेट का गांव छोटी हल्द्वानी के नाम से जाना जाता है। उस दौर में छोटी हल्द्वानी में चौपाल लगा करती थी। आज भी देश विदेश से सैलानी कॉर्बेट के गांव छोटी हल्द्वानी घूमने के लिए आते हैं।

साल 1947 में जिम कॉर्बेट देश छोड़कर विदेश चले गए और कालाढूंगी स्थित घर को अपने मित्र चिरंजीलाल को दे दिया। वन्यजीव प्रेमी संजय छिम्वाल कहते है कि साल 1907 में चंपावत शहर में एक आदमखोर 436 लोगों को अपना निवाला बना चुका था।

तब जिम कॉर्बेट ने लोगों को आदमखोर के आतंक से मुक्त कराया था। जिम ने 1910 में मुक्तेश्वर में जिस पहले तेंदुए को मारा था, उसने 400 लोगों को मौत के घाट उतारा था। जबकि दूसरे तेंदुए ने 125 लोगों को मौत के घाट उतारा था। उसे जिम ने 1926 में रुद्रप्रयाग में मारा था।

जिम कॉर्बेट ने अपनी जान की परवाह न करते हुए एक के बाद एक सभी आदमखोरों को मौत की नींद सुला दिया था। कहा जाता है कि जिम कॉर्बेट ने 31 साल में 19 आदमखोर बाघ और 14 आदमखोर तेंदुओं को ढेर किया था। इस तरह उन्होंने कुल 33 आदमखोर बाघ और तेंदुओं को ढेर कर आम जन को राहत दिलाई थी।

बता दें कि विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क देश-विदेश में बाघों के घनत्व के साथ ही अन्य वन्यजीवों के लिए चर्चित है। एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट को इस दुनिया से गए आज करीब 68 साल हो गए हैं। आज भी उनके नाम पर रामनगर व आसपास के क्षेत्रों में कई प्रतिष्ठान, रिजॉर्ट और यहां तक की सैलून की दुकानें भी चल रही हैं।

आज भी व्यवसाय करने वाले कहते हैं कि जिम कॉर्बेट पार्क रामनगर में अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं। इसलिए आज भी वे जिंदा हैं। एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट के नाम से रखे गए पार्क से जोड़कर सैकड़ों लोग पर्यटन से अपने व अपने परिवार की आजीविका चला रहे हैं। इसमें ऐसे भी लोग हैं जो कॉर्बेट के नाम के सहारे अपनी दुकान चला रहे हैं।

कॉर्बेट का नाम इतना प्रसिद्ध हो चला है कि कई लोगों ने अपने छोटे-बड़े प्रतिष्ठानों के नाम कॉर्बेट के नाम से ही रखे हैं। यहां तक कि पर्यटकों की बुकिंग करने वाले प्राइवेट लोगों ने भी अपनी साइटों के नाम कॉर्बेट के नाम पर रखे हैं।

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के पार्क वार्डन अमित ग्वासाकोटी ने बताया कि पूरे दिन कई कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है। उन्होंने बताया कि इस अवसर पर पौधारोपण अभियान भी चलाया गया उन्होंने बताया, “पार्क की स्थापना 1936 में हुई थी और इसका मूल नाम हैली नेशनल पार्क (तत्कालीन यूनाइटेड प्रोविंस के गवर्नर सर मैल्कम हैली के नाम पर) था।

 

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