आस्थाउत्तराखंड

राम ने जीवन में कभी मर्यादा का उल्लघंन नहीं किया, इसीलिए वो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए: डॉ रामविलास दास वेदांती महाराज

राम वन गमन की कथा सुन भावुक हो गए श्रद्धालु, सर्वश्रेष्ठ नृत्यांगना कला केंद्र द्वारा प्रशिक्षित बाल कलाकारों ने तरह-तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर सबका मन मोहा

कलयुग दर्शन (24×7)

नदीम सलमानी (संपादक)

हरिद्वार। श्रीराम कथा मर्मज्ञ ब्रह्मर्षि डॉ रामविलास दास वेदांती महाराज ने कहा कि राम एक आज्ञाकारी पुत्र थे। उन्होंने माता कैकयी की 14 साल की वनवास की इच्छा को स्वीकार किया। उनके पिता राजा दशरथ, रानी कैकेयी से वचनबद्ध थे। राम ने ‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन ना जाय’ का पालन किया। राजपाट का त्याग किया और 14 साल के वनवास पर चले गए। श्रीराम एक आदर्श भाई भी थें। राम ने कभी भरत से न ईष्या की और न द्वेष। बल्कि हमेशा भरत के प्रति अपना प्रेम दिखाते रहे और उसे राजपाठ संभालने की प्रेरणा देते रहे।

राम ने तीसरा आदर्श पति के रूप में प्रस्तुत किया। प्रभु राम 14 वर्ष तक वनों में वनवासी होकर रहे। ऋषियों-मुनियों की सेवा की। राक्षसों का संहार किया। रावण ने जब उनकी पत्नी देवी सीता का अपहरण किया तो राम ने रावण का सर्वनाश कर दिया। राम एक आदर्श राजा भी थे। उन्होंने राजा का जो आदर्श प्रस्तुत किया उसे आज तक कोई भुला नहीं सका। राम राज्य में किसी को कोई कष्ट नहीं था। सारी प्रजा सुखी थी। राम ने जीवन में कभी मर्यादा का उल्लघंन नहीं किया। इसीलिए वो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। माता-पिता और गुरू की आज्ञा का पालन करते हुए ‘क्यों’ शब्द कभी उनके मुख पर नहीं आया।

भगवान राम के आदर्श जीवन से प्रेरणा लेकर आप भी अपना जीवन सुधार सकते हैं। प्रेमनगर आश्रम में चल रही वशिष्ठ भवन धर्मार्थ सेवा ट्रस्ट के तत्वावधान में चल रही संगीतमयी श्रीराम कथा में अयोध्या धाम से आए कथा वाचक हिंदू धाम संस्थापक एवं वशिष्ठ भवन पीठाधीश्वर महंत डॉ रामविलास दास वेदांती महाराज ने जब राम वन गमन की कथा का मार्मिक वर्णन किया तो श्रद्धालु भावुक हो गए। कथा व्यास ने कहा कि चारों पुत्रों का विवाह होने के बाद राजा दशरथ ने श्रीराम को अयोध्या का राजा बनाने का निर्णय लिए। यह समाचार सुन नगर में खुशियां मनाई जाने लगीं।

इसी बीच महारानी कैकेयी ने राजा दशरथ से राम को चौदह वर्ष वनवास का वर मांग लिया। पिता की आज्ञा पाकर भगवान राम ने जब भाई लक्ष्मण व पत्नी सीता के साथ वन के लिए प्रस्थान किया तो पूरी अयोध्या नगरी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी जिन्हें राम ने वापस किया। इसके पूर्व उन्होंने भगवान परशुराम के चरित्र का भी वर्णन सुनाया जो शिव का धनुष टूटने के उपरांत क्रोधित होकर दंड देने आएं थे। लेकिन प्रभु श्री राम के सम्मुख आते ही समझ गए कि स्वयं नारायण सामने है और वह भगवान राम को आशीर्वाद देकर विदा हो गए। वहीं श्रीराम कथा के दौरान ब्राह्मण जागृति मंच के सदस्यों ने कथा व्यास डॉ रामविलास दास वेदांती महाराज एवं उनके उत्तराधिकारी डॉ राघवेश दास वेदांती महाराज को माला पहनाकर सम्मानित किया।

वहीं सर्वश्रेष्ठ नृत्यांगना कला केंद्र द्वारा प्रशिक्षित बच्चियों ने तरह-तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर सबका ध्यान आकर्षित किया। इन बच्चों को प्रशिक्षित करने वाले गुरु भवानी सिंह और गुरु माता इंदु सिंह को भी आयोजक समिति द्वारा सम्मान स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। साथ ही बच्चों को भी पुरस्कार और सम्मान पत्र प्रदान किए गए। इस मौके पर गुरु भवानी सिंह ने कहा कि श्रीराम कथा के मंच पर बच्चों को सम्मानित किया गया है।इससे नीश्चित तौर पर बच्चों का मनोबल बढ़ेगा और उन्हें भविष्य में बेहतर करने की प्रेरणा मिलेगी। उन्होंने कार्यक्रम संयोजक रंजीता झा, सीए आशुतोष पांडेय सहित सभी कार्यकारिणी के सदस्यों का आभार व्यक्त किया। मंच का संचालन संदीप डोगरा जी ने किया।

इस मौके पर मिथलेश तिवारी, राकेश उपाध्याय, सुनील सिंह, सीए आशुतोष पांडेय, बीएन राय, वीके त्रिपाठी, मनोज शुक्ला, विवेक तिवारी, राज तिवारी, श्रीनाथ प्रसाद ओझा, अमित गोयल, अमित साही, मुरारी पांडेय, कांग्रेस नेत्री विमला पांडेय, अपराजिता सिंह, नीलम राय, रश्मि झा, श्वेता तिवारी, निवेदिता, प्रियंका राय, सोनी राय, रंजना शर्मा, कंचन उपाध्याय, वाणी झा, वरूणेन्दु झा, किशोरी झा, प्रकाश झा, संतोष कुमार, सुनीता सिंह हरिनारायण त्रिपाठी, पं तरूण शुक्ला सहित अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।




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