आस्थाउत्तराखंड

हरिद्वार: श्रावण मास के चौथे सोमवार पर दरिद्र भंजन मंदिर में भक्तों की लगी कतारें, हर हर महादेव के जयकारों से गूंजी शिवनगरी

कलयुग दर्शन (24×7)

सागर कुमार (सह संपादक)

हरिद्वार में श्रावण माह में अलग ही नजारा देखने को मिलता है क्योंकि भगवान शिव हरिद्वार के कनखल से ही सृष्टि का संचालन करते हैं आज श्रावण मास के चौथे सोमवार के मौके पर सुबह से ही हरिद्वार के प्रसिद्ध मंदिरों एवं शिवालियों में लंबी-लंबी लाइन देखने को मिली। हर तरफ शिव भक्त नजर आ रहे हैं।

वही आज सावन के चौथे सोमवार यानि शिव की भक्ति का सबसे अच्छा दिन भी हैं। ऐसी माना जाता है जो श्रद्धालु श्रावण मास के चौथे सोमवार के दिन सुबह शुभ मुहूर्त में जलाभिषेक करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

हिंदू शास्त्रों के अनुसार जो भक्त श्रावण मास के सोमवार को भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं वह पूर्ण श्रद्धा के साथ भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं, भगवान शिव अपने उन भक्तों के सभी दुखों एवं दरिद्रता को दूर करते हैं और अपने भक्तों के सभी संकट हर उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

इसीलिए शास्त्रों के अनुसार सावन मास के सोमवार का महत्व सभी कष्टो एवं दुखो से छुटकारा पाने वाला है। मान्यता के अनुसार कनखल स्थित दरिद्र भंजन महादेव पर जो भक्तजन जलाभिषेक करते हैं दरिद्र भंजन महादेव अपने उन सभी भक्तों की दुख दरिद्रता को दूर कर सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

धर्मगरी हरिद्वार मे सावन के चौथे सोमवार के दिन हर की पैड़ी पर तीर्थ यात्रियों ने बड़ी संख्या में गंगा में स्नान किया और उसके बाद कनखल में शिव के ससुराल दक्षेश्वर महादेव मंदिर में रुद्राभिषेक किया और शिव का जलाभिषेक किया। सुबह से ही लोग लंबी लाइनों में लगे हुए थे और शिव का अभिषेक कर रहे थे। सावन के एक महीने में भगवान शंकर कनखल में अपने ससुराल में रहते हैं और श्रद्धालु दूर-दूर से आकर भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करते हैं। एक महीने भगवान शिव कनखल में रहकर अपने भक्तों का कल्याण करते हैं।

दक्षेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी महंत दिगंबर स्वामी विश्वेश्वर पुरी महाराज का कहना है कि शिव की ससुराल कनखल में स्थित दक्षेश्वर महादेव मंदिर सृष्टि के निर्माण के साथ ही सतयुग में स्थापित हुआ है। अपने सास और ससुर को दिए गए वचन के अनुसार भगवान शिव एक महीने कनखल में दक्षेश्वर महादेव मंदिर में वास करते हैं और कनखल तीर्थ वह स्थान है, जहां सृष्टि के निर्माण के साथ पहली बार शिव और सती का विवाह हुआ। यह सृष्टि का पहला विवाह स्थल है। यह सृष्टि का पहला स्वयंभू शिवलिंग है, जिसका प्रभाव 1000 किलोमीटर तक पड़ता है और इस सिद्ध पीठ के 1000 किलोमीटर का क्षेत्र तीर्थ नगरी के रूप में विख्यात रहता है। कनखल भगवान शिव की कर्मस्थली, साधना स्थली है और सती की जन्मस्थली, साधना स्थली एवं कर्म स्थली है।




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