आस्थाउत्तराखंड

भगवान शिव और विष्णु को अति प्रिय श्रावण मास परम साधना का पर्व है: स्वामी रामभजन वन

कलयुग दर्शन (24×7)

नदीम सलमानी (संपादक)

हरिद्वार/ कनाडा। निरंजनी अखाड़ा मायापुर हरिद्वार के अंतरराष्ट्रीय संत स्वामी रामभजन वन महाराज ने हनुमान मंदिर ब्रैम्पटन, कनाडा में सत्संग की महिमा बताते हुए कहा कि श्रावण मास परम साधना का पर्व है। श्रावण के समान ऐसा कोई दूसरा मास नहीं है, जो समस्त पृथ्वी वासियों को तृप्ति प्रदान करता है। भारतीय ऋषियों ने सनातन बारह महीनों के क्रम में पांचवें महीने को श्रावण मास कहा है। यह श्रवण नक्षत्र से बना है। उन्होंने कहा कि महर्षि पाणिनि के अनुसार चंद्र मास पूर्णिमा के समय होने वाले नक्षत्रों पर आधारित होते हैं। इसलिए जिस माह में श्रवण नक्षत्र में पूर्णिमा होती है, उसे श्रावण मास कहते हैं। स्वामी रामभजन वन महाराज कहते हैं कि ज्योतिष शास्त्र भगवान विष्णु को श्रवण नक्षत्र का स्वामी मानता है। कुछ विद्वानों के अनुसार सृष्टि की शुरुआत जल से हुई है और श्रावण मास में जल की प्रधानता है। आकाश से गिरने वाला जल अमृत के समान होता है। वेदों के अनुसार जल का एक पर्यायवाची शब्द ‘नार’ भी है और यह नार जल जिसका निवास है, स्वयं विष्णु नारायण हैं, अर्थात सृष्टिकर्ता ने सबसे पहले जल की रचना की। इस मास में भगवान विष्णु जगत-रक्षा का अपना दायित्व भगवान शिव को सौंपकर जल का आश्रय लेकर क्षीरसागर में शयन करने चले जाते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि सूर्य का एक नाम विष्णु भी है। जिन चार महीनों में विष्णु शयन करते हैं, उन महीनों में सूर्य की किरणों का प्रभाव पृथ्वी वासियों को वर्षा की अधिकता के कारण बहुत कम मात्रा में प्राप्त होता है।

सृष्टि के मूल में अग्नि और सोम दो ही तत्व कार्य करते हैं। इस समय दक्षिणायन काल, अग्नि की मंदता के कारण सभी जीव-जंतु, पेड़-पौधे, वनस्पतियों को सोम तत्व से जीवन मिलता है। इस मास में अधिक वर्षा होने से पृथ्वी में कण-कण फूट पड़ते हैं। गर्मी शांत हो जाती है। सभी जीवों का हृदय आनंद से भर जाता है। उन्होंने बताया कि श्रावण मास भगवान शिव को विशेष प्रिय है, इसलिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों से जल एकत्र कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थित भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाया जाता है। इसे कांवड़ यात्रा भी कहते हैं। इस मास में भगवान शिव की पूजा व अभिषेक भी किया जाता है। अधिकांश शिव भक्त सोमवार का व्रत रखते हैं। श्रावण मास में सोम तत्व की अधिकता होने के कारण सोमवार को विशेष महत्व दिया जाता है। इसलिए इस दिन भक्त शिव आराधना या रुद्राभिषेक बहुतायत से करते हैं। धार्मिक ग्रंथों में श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को कुंवारी कन्याओं और विवाहित स्त्रियों के लिए मंगला गौरी व्रत रखने का विधान बताया गया है। श्रावण मास की कृष्ण पक्ष द्वितीया को अशून्य शयन व्रत रखने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। कहा गया है कि इस व्रत से वैधव्य और विधुर का श्राप दूर होता है इससे यह भी सिद्ध होता है कि यह मास हरि हरात्मक मास है, जिसमें भगवान शिव और विष्णु की एक साथ पूजा का विधान है।

श्रावण कृष्ण तृतीया को झूला झूलने की परंपरा है। इस दिन कजली तीज मनाई जाती है। श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी पर्व मनाने की परंपरा है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। श्रावण मास की पूर्णिमा को श्रावणी कहते हैं। श्रावणी के दिन यज्ञोपवीत और रक्षाबंधन किया जाता है तथा उपकर्म करके संस्कृत दिवस भी मनाया जाता है। चेतन और अचेतन जगत में गति, विकास और परिवर्तन ही मानव जीवन का लक्ष्य है। श्रुति कहती है- सृष्टि के पूर्व न तो सत् था, न असत्, केवल एक अपरिवर्तनशील ईश्वर शिव ही विद्यमान थे। अतः सृष्टि के पूर्व और पश्चात जो वस्तु विद्यमान है, वह जगत का कारण विष्णु या शिव है। ईश्वर अनादि और अजन्मा है। वह अनादि और अनंत है, क्योंकि उसका न आदि है, न अंत। वह पवित्र करने वाली सभी वस्तुओं को पवित्र करता है। इसलिए भगवान शिव और विष्णु को प्रिय श्रावण मास से श्रेष्ठ कोई दूसरा महीना नहीं है।




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