रुड़की: वैज्ञानिकों ने तैयार किया ईश्वर नाम का अनोखा एप, बताएगा देशभर के सभी जलस्रोतों का हाल
कलयुग दर्शन (24×7)
नदीम सलमानी (संपादक)
रूड़की में स्थित NIH (एनआईएच) के वैज्ञानिकों ने ईश्वर नाम का एक एप तैयार किया है। दरअसल प्राकृतिक जल स्रोतों के सूखने और पानी कम होने की बातें लगातार सामने आ रही हैं, लेकिन इन स्रोतों को लेकर कोई भी आंकड़ा फिलहाल केंद्र सरकार के पास नहीं है। इसी समस्या को लेकर इस एप का अविष्कार किया गया। इस एप में जल स्रोतों का पूरा हाल दर्ज हो सकेगा। वहीं भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने एनआईएच के इस एप को मंजूरी भी दे दी है और पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इस एप की मदद से चार राज्यों का स्रोतों का सर्वे शुरू किया जा रहा है।
एनआईएच रुड़की के सेल फॉर स्प्रिंग के प्रभारी वैज्ञानिक एफ डॉ. सोबन सिंह रावत ने जानकारी देते हुए बताया कि देश में पहली बार जल स्रोतों के सर्वे को लेकर कोई काम हुआ है। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में एप की मदद से उत्तराखंड समेत ओडिसा, मेघालय और हिमाचल प्रदेश के चार राज्यों में स्रोतों का सर्वे शुरू किया जा रहा है। उन्होंने बताया पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश लोग पेयजल के लिए स्रोत यानी स्प्रिंग पर ही निर्भर हैं।
डॉ.सोबन सिंह रावत ने के अनुसार क्लाइमेट चेंज से स्रोतों के सूखने या फिर पानी कम होने की बात लगातार सामने आ रही है। वहीं सरकार के पास स्रोतों को लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं है। यही कारण है कि स्रोतों के उपचार और उनके रिचार्ज को लेकर कोई प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाया है और एप एक के बाद एक सूचना मांगता जाएगा और सभी सूचनाएं दर्ज करने के बाद स्रोत की जियो टैगिंग की जाएगी, जिसके बाद इसकी मदद से सभी स्रोतों की मॉनिटरिंग आसानी से हो सकेगी।
वहीं ऐसे में अगर कोई स्रोत सूखता है या उसमें पानी कम होता या फिर कुछ समस्या आती है तो उसकी जानकारी आसानी से मिल जाएगी। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के नैनीताल से इसकी शुरुआत की जा रही है। उन्होंने बताया कि जम्मू में तवी नदी के क्षेत्र में एप से सर्वे किया गया है। यहां पर 469 स्रोत की पूरी जानकारी ईश्वर एप पर डाली गई है। हिमाचल के चंबा में 981 जल स्रोतों का सर्वे कर एप पर अपलोड किया गया है। एक क्लिक पर ही इन स्प्रिंग का हाल कहीं भी बैठकर देखा जा सकता है।
डॉ. वैज्ञानिक सोबन सिंह रावत ने पहाड़ से लगातार हो रहे पलायन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इसकी वजह स्प्रिंग में पानी की कमी का कारण हो सकता है। उनका कहना है कि जब पहाड़ के खेत में खेती की जाती है तो जो प्राचीन समय के पुराने खेत होते हैं तो वह बंजड हो जाते है इस की वह यही है कि हर वर्ष खेत की जुताई की जाती थी जिससे खेत की सदन्तता बनी रहती थी लेकिन अब उसमें वॉइड्स खत्म हो जाते हैं जिसके कारण पानी अनदर नहीं जा पाता है इसी कारण खेत बंजड हो जाते हैं।
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