
कलयुग दर्शन (24×7)
दीपक झा (संवाददाता)
हरिद्वार। सनातन धर्म लोकोपयोगी पर्वौ का गुलदस्ता और विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्म है, जिसको भारत सहित कई देशों ने अपने संविधान में भी सम्मान दिया है। विश्व के 75 प्रतिशत देशों में सनातन धर्म के अनुयायी हैं, क्योंकि यह धर्म प्रकृति की प्रत्येक ऐसी वस्तु की पूजा करता है जो लोकोपयोगी या मानवता के लिए कल्याणकारी है। सूर्य सृष्टि के प्रत्यक्ष देव हैं जिनकी ऊर्जा एवं प्रकाश से सृष्टि का संचालन होता है, सनातन धर्म सूर्य को भगवान/ देव तुल्य मानता है। चंद्रमा ब्रह्मांड का उपयोगी ग्रह है जिसकी गतिविधियों के अनुरूप ही कई धर्मों में पर्वो का निर्धारण होता है। सनातन धर्म के पुरुष और महिलाएं दोनों ही चंद्रमा की पूजा करते हैं, इसी प्रकार मंगल, शुक्र और बृहस्पति आदि ग्रह एवं दिवसों की पूजा होती है। प्रकृति के उपयोगी वृक्ष पीपल, बरगद और नीम जो स्वास्थ्यवर्धक वायु का सृजन करते हैं सनातन धर्म इन वृक्षों को देव तुल्य मानकर पूजता है। आयुर्वेद के अनुसार तुलसी प्रकृति का सबसे उपयोगी पौधा है इस धर्म के अनुयायी तुलसी को भी पूजते हैं। गाय प्रकृति का सबसे उपयोगी पशु है, सनातन धर्म गाय को गौमाता मानकर पूजता है, इसके साथ ही जल, वायु,अग्नि ,पत्थर एवं मिट्टी के साथ ही हिमालय पर्वत की जड़ी बूटियों एवं पाषाण तत्व से परिपूर्ण गंगाजल को सनातन धर्म के अनुयायी सर्वाधिक पवित्र मानकर गंगा माता की पूजा और स्नान – दान करते हैं तथा सृष्टि एवं मानवता की संचालक तथा संरक्षण कर्ता नारी शक्ति के सम्मान स्वरूप कन्या पूजन करते हैं।

‘ सर्वे भवंतु सुखिन:’ और ‘विश्व का कल्याण हो’ जैसे स्लोगनों के माध्यम से समाज में सद्बुद्धि का संचार करने के लिए ही भारत के ऋषि – मुनियों ने ऋतु परिवर्तन के अनुकूल ऐसी पर्व श्रृंखला का सृजन किया है जिससे आज भी देश और समाज का प्रत्येक धर्म और संप्रदाय न केवल लाभान्वित होता है बल्कि उसके जीवन में खुशियों का आगाज होता है। बरसात में जहां आज आवागमन जल भराव से होने वाले नुकसान जन-धन हानि को रोकने के लिए पुलिस प्रशासन को लगाया जाता है, अब से 2000 वर्ष पूर्व हमारे ऋषि मुनियों ने चातुर्मास बता कर पहले ही आवागमन निषिद्ध कर दिया था। सनातन धर्म की संपूर्ण संरचना प्रकृति एवं मानवता के संरक्षण पर आधारित है। समाज में समरसता स्थापित रहे, जीवन समृद्धशाली एवं खुशहाल बने,इसीलिए ऋतु परिवर्तन के अनुरूप पर्वों का गुलदस्ता तैयार किया गया है। दीपावली से पूर्व और होली के बाद नवरात्रि साधना के व्रतों की व्यवस्था दी गई है, दीपावली को स्वच्छता एवं समृद्धि का प्रतीक माना गया है तो होली को आपसी सौहार्द के रूप में मनाया जाता है। कन्या पूजन और करवा चौथ का पर्व नारी शक्ति के सम्मान एवं सह्रदयता के सूचक है। हमारे पूर्वजों को यह ज्ञान पहले से ही था कि कलयुग मशीनरी एवं वाहन प्रधान युग होगा, व्यक्ति पैदल चलना भूल जाएंगे , इसीलिए श्रावण मास में कावड़ यात्रा का विधान बनाया, जिसमें देश की लगभग 20% जनता सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर स्वस्थ एवं श्रद्धामय समाज के सृजन का संदेश देती है।

सनातन धर्म की वैवाहिक व्यवस्था संपूर्ण विश्व में अद्वितीय है, जिसमें अग्नि को साक्षी मानकर ऐसे मंत्रों के माध्यम से युवक- युवतियों को परिणय बंधन में बांधा जाता है कि उनका रिश्ता न केवल आजीवन अटूट रहता है बल्कि सात जन्मों तक एक साथ रहने का संकल्प होता है। सनातन धर्म की गुरु – शिष्य परंपरा एवं पैत्रिक संपत्ति पर पुत्र का अधिकार ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसको न केवल भारत के संविधान में बल्कि की विश्व के अनेक देशों ने इसे लागू किया है। भगवान राम हों या कृष्ण कोई भी पुस्तकों का बैग लटका कर स्कूल नहीं गए सभी ने गुरुकुल पद्धति से गुरुओं के आश्रमों में स्वयं जाकर संस्कारिक शिक्षा का अर्जन किया वह शिक्षा आज भी प्रासंगिक है, जो किताबों में न होकर गुरु एवं माता-पिता की वाणी से प्राप्त होती है। यज्ञ – प्रवचन एवं मंत्रोच्चारण में आज भी ऐसी अदृश्य शक्ति है जो केवल गुरुओं के सानिध्य से ही प्राप्त होती है। गुरु ही ज्ञान का प्रदाता होता है और गुरु बिना व्यक्ति का जीवन अधूरा होता है। सनातन धर्म के सभी अनुयायियों को मेरा संदेश है कि माता-पिता और गुरु का सम्मान करें जीवन खुशहाल रहेगा।
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