आस्थाउत्तराखंड

दशहरा पर्व पर श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी में किया गया शस्त्र पूजन

कलयुग दर्शन (24×7)

दीपक झा (संवाददाता)

हरिद्वार। दशहरा पर्व पर श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी में शस्त्र पूजन कर धर्म रक्षा का संकल्प दोहराया। अखाड़े में प्राचीन काल से रखे सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश नामक भालों को देवता के रूप में पूजा गया। साथ ही आज के युग के हथियार और प्राचीन काल के कई प्रकार के शस्त्रों की पूजा मंत्रोच्चारण के साथ की गई। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष एवं श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्रीमंहत रवींद्र पुरी महाराज ने बताया कि दशहरे के दिन हम अपने देवताओं और शस्त्रों की पूजा करते हैं। आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने राष्ट्र की रक्षा के लिए शास्त्र और शस्त्र की परंपरा की स्थापना की थी।

हमारे देवी-देवताओं के हाथों में भी शास्त्र-शस्त्र दोनों विराजमान हैं। उन्होंने कहा कि महानिर्वाणी अखाड़े की प्राचीन परंपरा के अनुसार अखाड़े के रमता पंच नागा संन्यासियों द्वारा शस्त्रोंं का पूजन किया गया। श्रीमंहत रवींद्र पुरी महाराज ने बताया कि सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश हमारे भाले हैं, जिनको हम कुंभ मेले में स्नान कराते हैं और फिर उनका पूजन करते हैं। शंकराचार्य द्वारा संन्यासियों को शास्त्र और शस्त्र में निपुण बनाने के लिए अखाड़ों की स्थापना की गई थी, जिससे धर्म की रक्षा की जाए। उन्होंने कहा कि जो संन्यासी शास्त्र में निपुण थे, उनको शस्त्रों में भी आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा निपुण किया गया, इसलिए शास्त्र के साथ शस्त्रों की पूजा भी आवश्यक है।

श्रीमहंत रवींद्र पुरी महाराज ने कहा कि शास्त्र पूजन मनुष्य में आत्मबल बनाए रखने के लिए किया जाता है। शास्त्र पूजन इस कारण करते हैं कि जिससे शास्त्रों के द्वारा किसी प्रकार का अहित न हो और समय आने पर इनका धर्म की रक्षा के लिए उपयोग किया जा सके। उन्होंने कहा कि सन्यासी शास्त्र की मर्यादा के अनुरूप जीवन यापन करते हैं, किंतु राष्ट्र रक्षा और धर्म रक्षा के लिए समय आने पर वह शस्त्र उठाने से पीछे नहीं हटते, इस कारण स्वस्थ परम स्वस्थ पूजन की परंपरा है। आचार्य अवधेश शर्मा द्वारा कराए गए शास्त्र पूजन के दौरान श्रीमहंत रवींद्र पुरी, श्रीमहंत विनोद गिरी उर्फ हनुमान बाबा, मनोज गिरी, ज्ञान भारती, हरिशंकर गिरी, सूर्य मोहन गिरी, किशुन पुरी, प्रेमपुरी, राजेंद्र भारती, दरोगा, विक्रम गिरी, महंत गंगा गिरी समेत अनेक संत, महंत मौजूद रहे।

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