कलयुग दर्शन (24×7)
दीपक झा (संवाददाता)
आखिरकार बीते एक पखवाडे से चल रही हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा का नंदा सप्तमी के अवसर पर नंदा को कैलाश विदा करनें के साथ ही समापन हो गया। अब ठीक एक साल के उपरांत ही नंदा के लोक के इस लोकोत्सव का आयोजन होगा।
हिमालय के उच्च हिमालयी बुग्यालों में श्रद्धालुओं नें पौराणिक लोकगीतों और जागर के साथ हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा को कैलाश के लिये विदा किया।
अपनी “ध्याण” को ससुराल कैलाश को विदा करते समय महिलाओं की आंखे अश्रुओं से छलछला गयी। खासतौर पर ध्याणियां मां नंदा की डोली को कैलाश विदा करते समय फफककर रो पड़ी।
इस दौरान श्रद्धालुओं नें अपने साथ लाये खाजा- चूडा, बिंदी, चूडी, ककड़ी, मुंगरी भी समौण के रूप में माँ नंदा को अर्पित किये। दूसरी ओर बालपाटा बुग्याल में दशोली कुरूड की मां नंदा डोली की पूजा अर्चना करके कैलाश के लिए विदा किया गया।
सूर्य भगवान की किरणों और बादलों की लुकाछुपी के बीच सुनहरे मौसम में मंगलवार को बंड की नंदा की डोली पंचगंगा से चलकर नरेला बुग्याल पहुंची। जहां पर पहुंचे श्रद्धालुओं नें मां नंदा की पूजा अर्चना कर उन्हें समौण भेंट की और माँ नंदा को जागरों के माध्यम से कैलाश की ओर विदा किया गया।
इस दौरान पूरा हिमालय मां नंदा के जयकारे से गुंजयमान हो गया। बेदनी बुग्याल में हर साल नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा में रूपकुण्ड महोत्सव का आयोजन होता है।
इस बार भी बेदनी बुग्याल में 37 वा रूपकुण्ड महोत्सव आयोजित किया गया। जिसमें विभिन्न गांवों की महिला मंगल दलों की टीमों तथा राजकीय इण्टर काॅलेज वांण की छात्राओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए।
इस अवसर पर विभिन्न विभागों की टीमें भी मौजूद रही। इस अवसर पर वाण गांव के लोगों ने एक विशाल त्रिशूल वेदनी कुण्ड में चढ़ाया।
अब मां नंदा वेदनी से बांक होते हुए छः महीने के प्रवास के लिए अपने ननिहाल सिद्धपीठ देवराडा पहुंचेगी जहां विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना हवन-यज्ञ कर मां नंदा राजराजेश्वरी को मंदिर गर्भगृह में विराजमान कर दिया जाएगा।
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