उत्तर प्रदेश

सहारनपुर विकास प्राधिकरण में रिश्वत प्रकरण, भ्रष्टाचार खत्म या सिर्फ दिखावा?

जनता के भरोसे के साथ खेल जारी, विकास प्राधिकरण की छवि सवालों के घेरे में

कलयुग दर्शन (24×7)

अबलीश कुमार (सहारनपुर संवाददाता)

सहारनपुर। सहारनपुर विकास प्राधिकरण में हुए जेई रिश्वत प्रकरण ने पूरे सिस्टम की पोल खोलकर रख दी है। यह मामला न सिर्फ भ्रष्टाचार की गहराईयों को दिखाता है, बल्कि कई गंभीर सवाल भी खड़ा करता है। सवाल ये है कि क्या इस खेल में सिर्फ छोटे कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाया गया, या इसके पीछे कोई सोची-समझी साजिश काम कर रही है? इस प्रकरण में मेट वैभव का नाम सामने आया, सूत्रों के अनुसार, मेट जैसे कर्मचारी अक्सर केवल मोहरा होते हैं। इन्हें आगे करके असली खिलाड़ियों पर से ध्यान भटकाने की कोशिश की जाती है। सीधे बड़े अफसरों का नाम सामने न आए, इसलिए छोटे कर्मचारियों को पकड़कर पूरी कहानी वहीं खत्म करने का प्रयास होता है।

सवाल उठता है क्या वैभव सच में दोषी था, या उसे फंसाकर बड़े लोगों को बचाया गया? जांच में यह भी सामने आया कि वैभव को जानबूझकर फंसाया गया, भ्रष्टाचार के मामलों में अक्सर छोटे कर्मचारी पकड़े जाते हैं ताकि जनता को लगे कि कार्रवाई हो रही है। लेकिन असली खेल पर्दे के पीछे चलता रहता है। यही सवाल यहां भी उठता है, क्या यह केवल ध्यान भटकाने का खेल है? सूत्रों से मिली जानकारी और चर्चाओं में साफ है कि विकास प्राधिकरण में रिश्वतखोरी की जड़ें गहरी हैं। यह रिश्वत नेटवर्क न केवल निचले स्तर तक सीमित है, बल्कि इसमें अधिकतर विभागीय लोग शामिल हैं। जमीन, नक्शा पास कराने से लेकर निर्माण कार्य तक हर जगह से रिश्वत का धंधा चल रहा है। सहारनपुर विकास प्राधिकरण का यह प्रकरण एक मिसाल है कि कैसे सिस्टम में बैठे लोग जनता के भरोसे के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। गरीब और आम जनता फाइलों के चक्कर लगाती रहती है, लेकिन बिना पैसा दिए काम नहीं होता। ऊपर से नीचे तक फैले भ्रष्टाचार का जाल इतना मजबूत है कि फंसने वाले केवल छोटे कर्मचारी ही बनते हैं।

अब ये बड़े सवाल खड़े होते हैं
क्या सचमुच भ्रष्टाचार की जड़ें ऊपर तक फैली हुई हैं?
क्या सिर्फ छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई करके असली खिलाड़ियों को बचाया जा रहा है?
क्या एंटी करप्शन विभाग की कार्रवाई केवल दिखावा है?
क्या विभाग के उपाध्यक्ष अब आउटसोर्सिंग कर्मचारियों पर भरोसा कर पाएंगे, या यह केवल उपचारिकता ही रह गई?
इस प्रकरण के बाद भी कुछ मेटों के कार्यक्षेत्र में फेरबदल जरूरी था, पर उपाध्यक्ष की अनदेखी सवालों के घेरे में है?
क्या भ्रष्टाचार के असली खिलाड़ी बेनकाब होंगे, या यह मामला भी कुछ दिनों में ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

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