उत्तराखंड

वैदिक काल की परंपरा है छठ महापर्व

छठ पर्व है मुख्य रूप से सूर्य देव (जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य के देवता) और उनकी बहन छठी मैया (षष्ठी देवी) की उपासना का पर्व

कलयुग दर्शन (24×7)

सागर कुमार (सह संपादक)

हरिद्वार। छठ महापर्व वैदिक काल से चली आ रही लोक परंपरा है। इसका संबंध ऋग्वेद में वर्णित सूर्य पूजन से भी माना जाता है। यह पर्व साल में दो बार (चैत्र मास में और कार्तिक मास में) मनाया जाता है, लेकिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ सर्वाधिक लोकप्रिय है। छठ महापर्व के तीसरे दिन सोमवार को छठ व्रतियों ने गंगा घाटों पर जाकर अस्ताचलगामी सूर्य नारायण भगवान को अर्घ्य प्रदान किया। मंगलवार को उगते हुए सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान करने के साथ ही छठ महापर्व का समापन होगा। धर्मनगरी में हरकी पौड़ी, प्रेमनगर आश्रम, जटवाड़ा पुल, गंगनहर बहादराबाद, बैरागी कैंप, शीतला माता मंदिर घाट, राधा रास बिहारी घाट, पायलट बाबा घाट सहित अन्य सभी घाटों पर बड़ी संख्या में छठ व्रतियों का जमावड़ा लगा रहा। घाटों पर उत्सव का नजारा देखने को मिला। पारंपरिक छठ गीतों से धर्मनगरी गुंजायमान रही। पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार, इसकी जड़ें महाभारत काल और रामायण काल दोनों से जुड़ी हुई हैं। छठ महापर्व को मुख्य रूप से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश (पूर्वांचल) का सबसे बड़ा लोकपर्व माना जाता है और इसकी शुरुआत का केंद्र भी यही क्षेत्र रहा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता सीता ने वनवास के बाद मुंगेर में गंगा तट पर पहली बार छठ पूजा की थी। इसके बाद से ही इस महापर्व की शुरुआत हुई। एक मान्यता के अनुसार, सूर्यपुत्र कर्ण, जो अंग प्रदेश (वर्तमान में भागलपुर, बिहार) के राजा थे, वे प्रतिदिन घंटों पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। यह प्रथा भी छठ पर्व की नींव मानी जाती है।

यह भी माना जाता है कि पांडवों के जुए में अपना राजपाट हारने के बाद द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था, जिससे उन्हें अपना राजपाट वापस मिल गया। अतः, यह पर्व वैदिक काल से चला आ रहा है, लेकिन इसका प्रचलन और विस्तार मुख्य रूप से बिहार और उसके आसपास के क्षेत्रों से हुआ है, जहाँ यह लोक-आस्था का सबसे बड़ा महापर्व बन चुका है। छठ पर्व मुख्य रूप से सूर्य देव (जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य के देवता) और उनकी बहन छठी मैया (षष्ठी देवी) की उपासना का पर्व है। इसकी प्रमुख मान्यताएँ इस प्रकार हैं। छठी मैया को संतान की देवी माना जाता है, जो बच्चों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। निसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति के लिए भी यह व्रत रखते हैं। सूर्य देव को अर्घ्य देने से घर में सुख-समृद्धि, आरोग्य (अच्छा स्वास्थ्य) और खुशहाली आती है। यह पर्व 36 घंटे से अधिक समय तक निर्जला व्रत रखने के कारण शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण का प्रतीक है। यह अनुशासन और सादगी पर ज़ोर देता है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते हुए सूर्य (सांध्य अर्घ्य) और उगते हुए सूर्य (प्रातः अर्घ्य) दोनों की पूजा की जाती है, जो जीवन के चक्र (उत्थान और पतन) और समय के महत्व को दर्शाता है। इस पूजा में जल, नदी, और प्रकृति को महत्व दिया जाता है। व्रत के दौरान प्राकृतिक और सात्विक आहार का सेवन किया जाता है, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को भी दर्शाता है। पूर्वांचल उत्थान संस्था, पूर्वांचल महासभा, बिहारी महासभा, पूर्वांचल भोजपुरी महासभा, छठ पूजा समिति हरिपुर कलां, पूर्वांचल जनजागृति समिति, पूर्वांचल उत्थान सेवा समिति सहित अन्य संस्थाओं की ओर से छठ पूजा के लिए घाटों पर व्यापक स्तर पर इंतजाम किया गया है।‌

[metaslider id="7337"]


[banner id="7349"]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button